( जसवीर सिंह हंस ) हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजय करोल ने कहा कि दवाईयों के निर्माण, वितरण तथा निर्धारण में नियामक एजेंसियों की महत्वपूर्ण भूमिका है और इन एजेन्सियों को अपने दायित्व का ईमानदारी के साथ निर्वहन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आम जनमानस को जेनेरिक दवाईयों के बारे में जागरूक किये जाने की आवश्यकता है और इसके लिये सभी हितधारकों को सक्रियता के साथ कार्य करना चाहिए।
वह आज हि.प्र. उच्च न्यायालय में स्वास्थ्य विभाग तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा निःशुल्क जेनेरिक दवाईयों की उपलब्धता, प्रापण तथा गुणवत्ता पर आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला में हि.प्र. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस त्रिलोक चौहान, जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर, जस्टिस अजय मोहन गोयल, जस्टिस संदीप शर्मा भी मौजूद रहे।
जस्टिस संजय करोल ने कहा कि गांव के गरीब व बेसहारा मरीजों को प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में ही मूल उपचार सुविधा मिल जानी चाहिए, लेकिन यह चिंता की बात है कि गरीब मरीजों को एक अस्पताल से दूसरे को रेफर किया जाता है, और अंततः मरीज कई बार इलाज से वंचित तक रह जाता है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण स्तर के अस्पतालों में आवश्यक जीवन रक्षक दवाईयां उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि चिकित्सकों को भी अपने व्यवसाय का इमानदारी के साथ निर्वहन करना चाहिए, ताकि कोई पीड़ित व्यक्ति अव्यवस्था का शिकार न बने।उन्होंने कहा कि 108 राष्ट्रीय एंबुलेस सेवा में भी सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने स्वास्थ्य कार्यक्रमों तथा योजनाओं के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिये व्यापक जागरूकता अभियान की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रधान सचिव स्वास्थ्य प्रबोध सक्सेना ने स्वागत किया तथा स्वास्थ्य विभाग की गतिविधियों का विस्तृत ब्यौरा दिया। उन्होंने कहा कि राज्य में 2083 स्वास्थ्य संस्थान कार्यरत है, जिनमें 1700 के करीब चिकित्सक लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं। उनहोंने कहा कि राज्य में पांच मेडिकल कालेज है तथा छठा कालेज हमीरपुर में शीघ्र आरंभ किया जाएगा। इसके अलावा एम्स जैसा बड़ा संस्थान राज्य की स्वास्थ्य जरूरतों को निश्चित तौर पर पूरा करेगा। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य मानक देशभर में श्रेष्ठ हैं। शिशु मृत्यु दर 68 से 25 तक आई है। प्रजनन दर 2.1 भारत में है जबकि प्रदेश की 1.7 है। राज्य सरकार प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य खर्च का 44.3 प्रतिशत खर्च कर रही है।
प्रधान सचिव ने कहा कि असंक्रमित बीमारियां अधिक हो रही हैं। उनहोंने कहा कि राज्य में 6 डायलासिस इकाईयों की स्थापना कर दी गई है जबकि सात और स्थापित की जा रही है। उन्होंने कहा कि हिमाचल देश का पहला राज्य है जहां प्रत्येक स्वास्यि कार्यकर्ता के पास टैबलेट उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि राज्य में 10 केंसर उपचार इकाईयां को क्रियाशील बनाया गया है। उन्होंने आयुष्मान भारत योजना पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की।प्रबोध सक्सेना ने राज्य में जेनेरिक दवाईयों की उपलब्धता तथा वितरण पर भी चर्चा की।
हि.प्र. उच्च न्यायालय के महाधिवक्ता अशोक शर्मा, पूर्व महाधिवक्ता श्रवण डोगरा ने भी अपने विचार रखें तथा बहुमूल्य सुझाव दिये।विशेष सचिव स्वास्थ्य एवं प्रबंध निदेशक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पंकज राय ने धन्यवाद किया।आईजीएसी के डा. राजीव रैणा ने जेनेरिक तथा ब्रांडिड दवाओं में अंतर व गुणवत्ता बारे जानकारी देते हुए कहा कि वास्तव में इन दोनों की गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं है।
डा. गोपाल बेरी, उपनिदेशक स्वास्थ्य ने निशुल्क दवा नीति तथा इनके प्रापण पर विस्तृत प्रस्तुति दी जबकि राज्य दवा नियंत्रक नवनीत मरवाह ने दवाओं के प्रापण, वितरण में गुणवत्ता आश्वासन पर अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि भारत में उपलब्ध हर तीसरी दवा का निर्माण हिमाचल प्रदेश में किया जा रहा है।
कार्यशाला में हि.प्र. उच्च न्यायालय के अधिकारी, स्वास्थ्य निदेशक डा. बलदेव ठाकुर, पंचायती राज संस्थानों के प्रतिनिधि, चिकित्सक, विधि विश्वविद्यालय व कालेजों के विद्यार्थी तथा अन्य हितधारक मौजूद रहे।