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श्मशान घाट को समाज अंतिम समय का साक्षी और आत्मिक शांति का द्वार मानता है। अगर श्मशान घाट से असुरक्षा और अमानवीयता का ऐसा दृश्य सामने आए, तो यह केवल एक घटना नहीं रह जाती, बल्कि पूरे तंत्र और समाज के लिए शर्मनाक सवाल खड़े कर देती है।
श्मशान घाट से अस्थियां चोरी
हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के चंबाघाट श्मशान घाट से सामने आई यह घटना ऐसी ही है, जिसने न सिर्फ प्रशासनिक दावों की पोल खोल दी है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को भी गहरी चोट पहुंचाई है। श्मशान घाट से एक महिला की अस्थियां चोरी हो गई हैं।
सोलन नगर निगम के वार्ड नंबर–5 की रहने वाली एक महिला का करीब दस दिन पहले निधन हुआ था। परिजनों ने पूरी श्रद्धा और हिंदू परंपराओं के अनुसार चंबाघाट श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया।
लॉकर में रखी थी अस्थियां
इसके बाद उनकी अस्थियों को एक कलश में संजोकर अस्थि लॉकर में इस विश्वास के साथ रखा गया कि शुभ मुहूर्त पर हरिद्वार जाकर गंगा में उनका विसर्जन किया जाएगा। यह वह क्षण होता है, जब परिवार पहले से ही असहनीय दुख से गुजर रहा होता है और आस्था ही उसका एकमात्र सहारा बनती है।
गुरुवार की सुबह जब परिजन अपनी मां की अस्थियां लेने श्मशान घाट पहुंचे, तो वहां का मंजर देखकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। अस्थि लॉकर का ताला टूटा हुआ था और भीतर रखा कलश गायब था।
पीतल की थाली और लोटा भी गायब
इतना ही नहीं, चोरों ने वहां रखी पीतल की थाली और लोटे जैसे धार्मिक बर्तनों को भी उठा लिया। यह घटना केवल आर्थिक नुकसान नहीं थी, बल्कि परिजनों के लिए उनके जख्मों को दोबारा कुरेदने जैसा दर्दनाक अनुभव था। जिस मां को उन्होंने पूरे सम्मान के साथ विदा किया था, उसकी अंतिम निशानी तक सुरक्षित नहीं रह पाई।
यह घटना चंबाघाट श्मशान घाट की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। हैरानी की बात यह है कि यह पहली बार नहीं है जब इस स्थान को लेकर लापरवाही और अव्यवस्था उजागर हुई हो। इससे पहले भी यहां ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जहां एक जीवित महिला का डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया था।
परिवार को सौंपा अजनबी का शव
लॉकडाउन के दौरान तो हद तब हो गई थी, जब एक परिवार को अंतिम संस्कार के लिए किसी अजनबी का शव सौंप दिया गया। इन घटनाओं के बावजूद प्रशासन ने श्मशान घाट की सुरक्षा और प्रबंधन को लेकर ठोस कदम उठाने की जरूरत नहीं समझी।
लोगों का कहना है कि श्मशान घाट वह स्थान है, जहां व्यक्ति और परिवार अंतिम विदाई के समय शांति, सम्मान और सुरक्षा की उम्मीद करता है। लेकिन चंबाघाट में हालात इसके बिल्कुल उलट नजर आ रहे हैं। न पर्याप्त सुरक्षा कर्मी, न निगरानी के साधन और न ही जिम्मेदारों की जवाबदेही तय करने की व्यवस्था।
उठ रहे कई सवाल
यह मामला सिर्फ अस्थियों की चोरी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मृतकों की गरिमा और जीवितों की भावनाओं के साथ क्रूर मजाक है। अब लोगों का सवाल यह है कि-
प्रशासन इस संवेदनशील प्रकरण को कितनी गंभीरता से लेता है? क्या दोषियों की पहचान कर उन्हें सख्त सजा दी जाएगी?क्या श्मशान घाटों की सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे? क्या यह घटना भी फाइलों में दबकर रह जाएगी और किसी और परिवार को इसी पीड़ा से गुजरना पड़ेगा?









