( जसवीर सिंह हंस ) पारम्परिक जल स्त्रोतों के कायाकल्प तथा जल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये सामुदायिक सहभागिता प्रभावी जल संरक्षण में मददगार सिद्ध हो सकती है। यह बात मुख्यमंत्री श्री जय राम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा द्वारा होटल पीटरहॉफ में जल संरक्षण पर आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कही।
श्री जय राम ठाकुर ने कहा कि जल संकट की समस्या से निपटने के लिए एक विशाल अभियान शुरू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग ने स्थिति को और भी गंभरी बना दिया है। जल संरक्षण तथा जल प्रबन्धन समय की आवश्यकता है और इस दिशा में सरकार, स्थानीय निकायों तथा आम जनमानस के सामूहिक प्रयासों को जुटाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि राज्य में जल साक्षरता के लिए विशेष अभियान आरम्भ किया जाएगा ताकि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर जनमानस को जागरुक किया जा सके। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के लिए पारम्परिक तरीकों को अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ियों के लिए जल बचाना तथा जल स्त्रोतों को पुनः जीवित करना प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेवारी है। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के उपायों को प्रभावी बनाने के पंचायती राज स्तर पर कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा ताकि चुने हुए प्रतिनिधियों को शामिल किया जा सके। उन्होंने कहा कि पुराने जल स्त्रोतों के पुनर्जीवन तथा वर्षा जल संरक्षण के लिए नए ढ़ांचों का निर्माण करने के प्रयास किए जाएंगे।
मुख्यमंत्री ने विधायकों को उनके संबंधित क्षेत्रों में जल संरक्षण अभियान आरम्भ करने का आग्रह किया ताकि हिमाचल प्रदेश इस प्रयास में अग्रणी बने। उन्होंने न केवल राजस्थान बल्कि देशभर में जल संरक्षण को एक मिशन बनाने के लिए श्री राजेन्द्र सिंह के प्रयासों की सराहना की। उन्होंन कहा कि जल संरक्षण तथा पयार्वरण संरक्षण में वनीकरण भी अहम् भूमिका निभा सकता है।
मुख्यमंत्री का स्वागत करते हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश देश के चुनिन्दा राज्यों में है जहां काफी अधिक वर्षा होती है। अधिकांश पानी नदियों में बहकर उपयोग न होने के कारण बर्बाद हो जाता है। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि जल की प्रत्येक बूंद का पूर्ण उपयोग हो। उन्होंने कहा कि इससे न केवल जल का संरक्षण होगा बल्कि नदियों और नालों को बहते रहने के लिए इनके पुनर्जीवन में मदद मिलेगी।
कांग्रेस विधायक दल के नेता श्री मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों की भौगोलिक स्थितियों के मध्यनज़र जल संरक्षण के लिए प्रत्येक क्षेत्र को अलग से कार्यनीति की आवश्यकता है। उन्होंने इस कार्यशाला के आयोजन के लिए राज्य विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल का धन्यवाद किया। मैगसैसे पुरस्कार विजेता ‘वाटर मेन आफ इंडिया’ डॉ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश भाग्यशाली है जहां वर्ष के दौरान 180 सेंटीमीटर वर्षा होती है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद भूमि जल तेज रफतार के घट रहा है। उन्होंने कहा कि बारहमासी जलाश्यों का लगभग 70 प्रतिशत जल सूख चुका है। उन्होंने भूमि जल संरक्षण की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि भारत की परम्परागत जल संरक्षण प्रणाली विश्वभर में जानी जाती है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग विवेकपूर्ण ढ़ंग से करना समय की आवश्यक है। महाराष्ट्र ‘जल बिरादरी’ के अध्यक्ष श्री नरेन्द्र चुग ने इस अवसर पर प्रस्तुती दी। शिक्षा मंत्री श्री सुरेश भारद्वाज, कृषि तथा जनजातीय विकास मंत्री डॉ. राम लाल मारकण्डा, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री श्री वीरेन्द्र कंवर, विधायकगण, अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त डॉ. श्रीकान्त बाल्दी, अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं मुख्यमंत्री की प्रधान सचिव श्रीमती मनीषा नन्दा, नगर निगम की महापौर श्रीमती कुसुम सदरेट और राज्य सरकार के अन्य अधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।