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देश में ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने की दिशा में केंद्र सरकार ने लद्दाख से हरियाणा के कैथल तक 20 हजार मेगावाट क्षमता की सोलर पावर ट्रांसमिशन लाइन परियोजना को मंजूरी दे दी है। इस महत्त्वाकांक्षी योजना की कुल लागत 21 हजार करोड़ रुपये आंकी गई है। यह हाई वोल्टेज लाइन लाहौल स्पीति, कुल्लू, मंडी और बिलासपुर जैसे संवेदनशील इलाकों से गुजरती हुई हरियाणा पहुंचेगी। पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन द्वारा परियोजना की डीपीआर और टेंडर प्रक्रिया अंतिम चरण में है। जल्द ही भूमि अधिग्रहण का कार्य शुरू होगा। परियोजना के तहत कई क्षेत्रों में विशालकाय ट्रांसमिशन टावर खड़े किए जाएंगे जिनसे हाई वोल्टेज तार गुजरेंगे। ये तार घरों, बाग-बगीचों और खेतों के ऊपर से होकर गुजर सकते हैं। जिससे स्थानीय निवासियों की निजता, सुरक्षा और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। स्थानीय लोग इस परियोजना को लेकर चिंतित और नाराज़ हैं। उनका कहना है कि पर्यावरणीय प्रभाव, सुरक्षा जोखिम और मुआवज़े की पारदर्शिता जैसे मुद्दों पर कोई स्पष्टता नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस पूरे प्रोजेक्ट से हिमाचल को प्रत्यक्ष तौर पर कोई लाभ नहीं मिलने वाला है न तो हिमाचल को इसमें बिजली मिलने की कोई योजना है और न ही किसी प्रकार की आर्थिक भागीदारी तय की गई है। स्थानीय लोगों का सवाल है कि जब पर्वतीय क्षेत्र का जोखिम और संसाधन इस्तेमाल हो रहे हैं तो राज्य को हिस्सेदारी क्यों नहीं। हाल की बारिशों में कई क्षेत्रों में छोटे ट्रांसमिशन टावर गिर चुके हैं।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जब हल्की बारिश में सिस्टम नहीं टिक पाता तो इतनी भारी हाई वोल्टेज लाइनें बर्फबारी, भूस्खलन और मौसम की मार कैसे झेलेंगी।
राज्य सरकार को चाहिए कि वह परियोजना के मार्ग पर्यावरणीय आकलन और मुआवज़ा नीति पर स्पष्ट रुख अपनाए। स्थानीय प्रशासन को जन सुनवाई आयोजित करनी चाहिए ताकि लोगों की बात केंद्र तक पहुंच सके। ज़रूरी है कि हिमाचल को शेयर, बिजली या रॉयल्टी के रूप में लाभ मिले। ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसकी जानकारी दी है।