(नीना गौतम )भले ही संचार क्रांति के इस दौर में जहां लोग वीडियो कॉलिंग की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं वहीं, कुल्लू जिला के 3 गांवों में आज भी मोबाइल फोन की घंटी कई वर्षों के इंतजार के बाद भी रुक रुक कर बज रही है। यहां लोग आज भी चि_ी पत्रों पर निर्भर रहते हैं या फिर संचार संपर्क के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है। जिला कुल्लू कीसैंज घाटी के शाकटी, मरौड व शुगाड आदि गांवों में आजादी के तीन दशक बाद भी संचार सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है और लोग संचार के लिए तरस रहे हैं। यह जो मोबाइल टावर लगाए गए हैं उनसे सिग्नल नहीं आ रहा है जो मात्र शोपीस बने हुए हैं।
लोगों का कहना है कि कई बार शासन-प्रशासन से मांग उठाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। जिन लोगों ने संचार सुविधा शुरू होने की उम्मीद में मोबाइल फोन खरीद रखे हैं वो शोपीस बने हुए हैं। यही हाल लपाह, गाढ़ा पारली, निहारनी, वाह, चेनगा, थाचण, नणीडूआर, मैंल वमझाण आदि दर्जनों गांव का है। इन गांवों में भी स्थापित मोबाइल टावर केसिग्नल नहीं पहुंचते हैं। इस हालात में क्षेत्र के लोग संचार सुविधाओं कालाभ नहीं उठा पा रहे हैं। इंटरनेट का उपयोग करना युवा वर्ग के लिए सपना बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि वह पूर्व में स्थापित मोबाइल टावरों की रेंज बढ़ाने और नए टॉवर स्थापित करने की मांग लगातार उठा रहे हैं लेकिन आज तक कोई भी सुनवाई नहीं हो पाई है।
भले ही हिमाचल प्रदेश में संचार क्रांति पूर्व मंत्री भारत सरकार सुखराम की बदौलत करीब चार दशक पूर्व आई है लेकिन बरसों बीत जाने के बावजूद आज भी कई गांवों में फोन कीघंटी नहीं बज रही है।
उल्लेखनीय है कि नेटवर्क नहीं आने से मोबाइल फोन शोपीस बन गए हैं और सैज घाटी के दुर्गम क्षेत्रों में अपनों से बात करने के लिए लोगों को भारीपरेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का अपने रिश्तेदारों से संपर्कनहीं हो पा रहा है। हालांकि ग्रामीणों ने बीएसएनएल एयरटेल कंपनियों केअधिकारियों को सूचित कर लिया है बावजूद इसके मोबाइल नेटवर्क गायब रहने से दुर्गम क्षेत्रों के लोगों को मोबाइल पर बात करने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि आपात स्थिति में एक दूसरे से संपर्क करना मुसीबत का कारण बन गया है। बहरहाल आजादी के 7 दशकों बाद भी कुल्लू जिला के कई गांवों में फोन की घंटी नहीं बज रही है।












