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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला जिले के तहत रोहड़ू तहसील में बच्चे के साथ हुए कथित जातिगत उत्पीड़न और आत्महत्या से जुड़े मामले में आरोपी पुष्पा देवी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने इस मामले में अग्रिम जमानत याचिका को अमान्य ठहराते हुए खारिज कर दिया. अदालत ने पुलिस की स्टेट्स रिपोर्ट और एफआईआर का अवलोकन करने पर पाया कि इस मामले में प्रथम दृष्टया आरोपी ने आत्महत्या करने वाले बच्चे को पीटा था और उसे गौशाला में बंद कर दिया था. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि मृतक बच्चे ने अभियुक्त के घर को छू लिया था और वह शुद्धिकरण के लिए बलि का बकरा चाहती थी.
हाईकोर्ट ने कहा कि यह अपराध मृतक की जाति के कारण किया गया था. अगर मृतक अनुसूचित जाति से संबंधित न होता तो शायद यह अपराध नहीं होता. जमानत याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि फिलहाल यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि याचिकाकर्ता ने प्रथम दृष्टया अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(2) (va) के तहत दंडनीय अपराध नहीं किया है. कोर्ट ने सरकार द्वारा उठाई गई आपत्ति को बरकरार रखते हुए कहा कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 18 में निहित प्रतिबंध के मद्देनजर गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए वर्तमान याचिका विचारणीय नहीं है. इसके साथ ही याचिका को विचारणीय न मानते हुए खारिज किया जाता है.
इस मामले में पहले बीएनएस के विभिन्न प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. पुलिस ने मामले की जांच की और पाया कि मृतक बच्चा सिकंदर अनुसूचित जाति समुदाय से था. आरोपी पुष्पा देवी अनुसूचित जाति से नहीं है. मृतक की उम्र 11 वर्ष और 10 महीने थी, जबकि आरोपी महिला की उम्र 50 वर्ष है. आरोपी ने मृतक से उसके घर की शुद्धि के लिए एक बकरे की मांग की थी और इस तथ्य की पुष्टि कुछ लोगों के बयानों से हुई.
आरोपी ने 1 अक्टूबर, 2025 को एक स्थानीय समाचार चैनल को एक साक्षात्कार भी दिया, जिसमें उसने स्वीकार किया कि उसने मृतक को अपनी गौशाला में बंद कर रखा था और कहा कि जब तक उसे बकरा नहीं दिया जाता, वह उसे नहीं छोड़ेगी. एक कारदार ने अनुसूचित जाति के सदस्यों के खिलाफ प्रचलित जातिगत पूर्वाग्रहों के बारे में एक बयान दिया, जिन्हें अछूत माना जाता है और घर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है. एफआईआर में यह भी उल्लेख है कि मृतक ने अपनी मां को बताया था कि आरोपी और 2-3 महिलाओं ने उसको पीटा और गौशाला में बंद कर दिया था. आरोपी कह रही थी कि मृतक ने उसके घर को छुआ था और वह उसे तब तक नहीं छोड़ेगी जब तक उसे बकरा नहीं दे दिया जाता.
हिमाचल हाईकोर्ट ने कहा कि स्थिति रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों से पता चलता है कि आरोपी ने मृतक को गौशाला में बंद कर दिया था और उसे इसलिए पीटा था, क्योंकि उसने उसके घर को छुआ था. मृतक उसी गांव का था और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 8(सी) के अनुसार, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आरोपी मृतक की जाति से अवगत थी. किसी व्यक्ति को पीटना और धमकाना प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 323 और 506 के तहत दंडनीय है, जिनका उल्लेख धारा 3(2)(va) में किया गया है. चूंकि मारपीट इसलिए की गई, क्योंकि मृतक ने आरोपी के घर को छुआ था, जो उसे अपनी जाति के कारण करने का अधिकार नहीं था, प्रथम दृष्टया, अपराध मृतक की जाति के कारण किया गया था.