जिला सिरमौर में आज भी सदियों से चली दिवाली के अवसर पर भेट की परंपरा कायम है। भाई दूज के दिन जहां अन्य जिलों में बहनें भाई को टीका लगाती है। वही भाई दूज के दिन जिला सिरमौर में आज भी दामाद अपनी सास-ससुर को दीपावली की भेंट छोड़ते हैं।
दीपावली की इस भेट में खीलें, पताशे, अखरोट व गुड़ होता है। दिवाली पर दामाद द्वारा अपने सास-ससुर को भेटने या उपहार की यह परंपरा सदियों पुरानी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जब कई कई महीनों तक काम की व्यवस्था के कारण काफी समय तक जब दामाद अपने ससुराल नहीं जा पाते थे। तो दीपावली के अवसर पर सास-ससुर को उपहार स्वरूप खेल, पताशे, गुड व अखरोट की भेट की परम्परा शुरू की गई थी। जो आज भी सिरमौर जिला में जारी है
। दूज के दिन सास-ससुर भी बड़ी उत्सुकता से अपने दामाद व बेटीओं का इंतजार करते है। उनके लिए दीपावली के अवसर पर असकलियां, पटांडे, लुशके व कांजन आदि पारम्पारिक पकवान बनाए जाते हैं। दीपावली में विशेषकर कांजन का विशेष महत्व है। कांजन को लस्सी व चावल से तैयार किया जाता है। एक बड़े बर्तन में चावलों को लस्सी में तब तक पकाया जाता है। जब तक वह अच्छी तरह से पक कर तैयार ना हो जाए।
उसके बाद एक टोकरी में जिसमें केले के पत्ते रखे होते हैं, उसमें उड़ेल दिया जाता है। उसके बाद केलों के पत्तों के ऊपर एक बड़ा सा पत्थर से उसे ढक दिया जाता है। ताकि वह अच्छी तरह जम जाए और बाद में बर्फी के पीस की तरह उसे काट कर खाने के लिए परोसा जाता है। कांजन खाने के लिए गुड से बनी शरबत, देसी घी व शक्कर का पयोग किया जाता है। आधुनिक चकाचौंध की रफ्तार में यह परंपरा अभी जिला सिरमौर में जीवित है।