राष्ट्र स्तरीय विंटर कार्निवाल मनाली में विंटर क्वीन प्रतियोगिता के अलावा वॉयस ऑफ कार्निवाल का आयोजन भी आकर्षक का केंद्र रहा। यहां इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए इस बार प्रतिभागियों का रिकॉर्ड टूटा है। इस बार विभिन्न स्थानों पर लिए ऑडिशनों में 300 से अधिक युवाओं ने इस प्रतियोगिता में अपनी परीक्षा दी। वहीं, सभी प्रतिभागियों को पछाड़ते हुए सुंदरनगर से आए सुरों के बादशाह ऋषभ भारद्वाज ने वॉयस ऑफ कार्निवाल का ताज अपने सर सजा दिया है।
ऋषभ भारद्वाज ने अनेकों गीतों को सुर देकर यहां पर आए दर्शकों को जहां खूब नचाया वहीं, निर्णायकमंडल का भी दिल जीत लिया। इससे पहले ऋषभ भारद्वाज शिमला में राष्ट्र स्तरीय हिमाचल गॉट टैलेंट को भी जीत चुके हैं। उधर, इस प्रतियोगिता में प्रथम रनरअप करसोग के आनंद कुमार रहे हैं। वहीं, द्वितीय रनरअप में दो युवाओं ने जगह बनाई जिसमें नग्गर की श्वेता व सिरमौर के दीपक चौहान ने वॉयस ऑफ कार्निवाल का खिताब जीता है। ऋषभ भारद्वाज ने यह खिताब जीतकर जहां पूरे देश में नाम कमाया है वहीं, यह साबित कर दिया है कि हिमाचल की माटी में सुरों की कोई कमी नहीं है और प्रकृति के साथ यहां पर संगीत भी नृत्य करता है।
ऋषभ भारद्वाज के पिता ब्रिज लाल भारद्वाज शास्त्रीय संगीत के जाने-माने प्रोफेसर रहे हैं। वहीं, उनकी माता वर्तमान में भी सलापड़ में संगीत की प्रवक्ता है। ऋषभ ने इस प्रतियोगिता को जीतने के बाद बेहद खुशी जाहिर करते हुए बताया कि वह इसका श्रेय अपने माता-पिता व गुरूजनों को देते हैं। उन्होंने बताया कि वॉयस ऑफ कार्निवाल का ताज जीतना उनके पिता ब्रिज लाल भारद्वाज के लिए श्रद्धांजली के रूप में समर्पित करता हूं। उन्होंने बताया कि उनका उद्देश्य संगीत की दुनिया में आसमान की बुलंदियां छुना है। इसके अलावा वे हिमाचली सुरों की परख करके उन्हें तराशना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि वे पुष्तैनी तौर पर संगीत की दुनिया की सेवा कर रहे हैं। पिता द्वारा खोली संगीत की अकादमी को आगे चला रहे हंै। शास्त्रीय गायन व संगीत का अच्छा जानकार होने का जज्बा रखने वाले ऋषभ ने बताया कि वे हमेशा संगीत की शिक्षा बच्चों को प्रदान करवा रहे हैं और भविष्य में भी संगीत का विद्यादान जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि जब उनका कोई छात्र संगीत की दुनिया में अच्छा नाम कमाता है तो उनके दिल को सकून मिलता है
। ऋषभ के सर वॉयस ऑफ कार्निवाल का ताज सजने से प्रदेशभर के संगीत प्रेमियों में भी खुशी की लहर है। वहीं, दूसरे स्थान पर रहे करसोग के आनंद कुमार को संगीत की दुनिया में पांव रखने का बेहद शौक है। आनंद कुमार ने हालांकि अभी तक संगीत की कोई अच्छी शिक्षा नहीं ली है लेकिन पहाड़ों में गुनगुनाते ही इस खिताब को जीतने में कामयाब हो गए हैं। वहीं, तीसरे स्थान पर रही श्वेता जिला कुल्लू के नग्गर की रहने वाली है और अंतरराष्ट्रीय रौरिक संगीत अकादमी नग्गर में संगीत सीख रही है। तीसरे स्थान पर ही रहे दूसरे प्रतिभागी सिरमौर के दीपक चौहान लोकगायक हैं और बचपन से गीत-संगीत में शौक रखते हैं।
उधर, इस प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में शामिल रहे कृष्णा ठाकुर, कमलेश शर्मा व डॉ. सूरत ठाकुर का कहना है कि इस प्रतियोगिता में उन्हें एक से बढ़कर एक प्रतिभावान सुरों के पारखी नजर आए हैं। उनके अनुसार इस प्रतियोगिता में जहां प्रतिभागियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया वहीं, बारिकी से स्वरों को परख कर निर्णय दिया है। उनके अनुसार हिमाचल में सुरों की कमी नहीं है। उधर, कृषि एवं आईटी मंत्री राम लाल मार्कंडेय ने वॉयस ऑफ कार्निवाल को ईनाम देकर सम्मानित किया।