नीति आयोग ने हिमाचल प्रदेश तथा आन्ध्र प्रदेश की तर्ज पर शून्य लागत प्राकृतिक कृषि को व्यवहारिक बनाने की ओर कार्य करने के लिए सभी राज्यों का आह्वान किया है, जिसके लिए आयोग हर प्रकार की सहायता प्रदान करेगा। नीति आयोग के अनुसार शून्य लागत प्राकृतिक कृषि को वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने में एक मान्यता-प्राप्त व महत्वपूर्ण भाग है। इस कृषि को अपनाने से कृषि की लागत में कमी आने के फलस्वरूप किसानों के मुनाफे में भी वृद्धि होगी। नीति आयोग ने सोमवार देर सांय नई दिल्ली में शून्य लागत प्राकृतिक कृषि पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने सम्मेलन की अध्यक्षता की तथा राज्यपाल आचार्य देवव्रत इस अवसर पर विशेष अतिथि के तौर पर सम्मिलित हुए।
इस अवसर पर अपने सम्बोधन में राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि आज हमारे समक्ष किसानों की आय को दोगुना करने की चुनौती है, जिसमें मृदा की उर्वरता भी बनी रहे तथा फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि हो। यह उद्देश्य रसायनिक खाद व कीटनाशकों के उपयोग द्वारा सम्भव नही है। इसलिए शून्य लागत प्राकृतिक कृषि अपनाना ही एकमात्र विकल्प है, जिसे कि खेतों में सफलतापूर्वक जॉंचा गया है।
उन्होंने शून्य लागत प्राकृतिक कृषि से सम्बन्धित विस्तृत दस्तावेज प्रस्तुत किए तथा गुरूकुल कुरूक्षेत्र में लगभग 200 एकड़ भूमि में प्राकृतिक कृषि अपनाने का अपना व्यापक अनुभव भी सांझा किया।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में व्यापक तौर पर प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जा रहे है तथा किसान प्राकृतिक कृषि को अपना रहे हैं। शून्य लागत प्राकृतिक कृषि एक व्यवहारिक पद्धति है तथा इसको अपनाने से न केवल लघु व सीमान्त किसानों को लाभ मिलेगा, बल्कि मध्यम व बड़े किसान भी इस कृषि को बिना किसी लागत के अपना सकेंगे। इस कृषि से मिट्टी के क्षय को रोकने तथा उर्वरकता बनाए रखने में सहायता मिलती है और यह कृषि मौसमी बदलाव से भी प्रभावित नहीं होती। .
आचार्य देवव्रत ने कहा कि शून्य लागत प्राकृतिक कृषि प्रणाली रसायनिक एवं जैविक कृषि का एक मात्र विकल्प है, क्योंकि यह सुरक्षित होने के साथ-साथ किसानों की आय को भी दोगुना करने में सक्षम है। इस प्रणाली के अन्तर्गत उत्पादन की लागत शून्य रहती है तथा इसके उत्पाद विषैले भी नहीं होते। इस कृषि से भूमि की पैदावार में वृद्धि, कम पानी की खपत, पर्यावरण मित्र कीटनाशकों के संरक्षण तथा श्रेष्ठ गुणवत्ता के उत्पाद प्राप्त करने में सहायता मिलती है। उन्होंने कहा कि इसके अन्तर्गत दो तरह की प्राकृतिक कृषि पद्धतियां उपयोग की गईं हैं, जिसमें फसल की पैदावार व कटाई की लागत लगभग शून्य है, जिसके फलस्वरूप किसानों को खाद व कीटनाशक खरीदने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि इस कृषि में उपयोग किए जाने वाले तत्व स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं जैसे कि गोबर व गोमूत्र, जिससे कृषि की लागत में कमी आएगी।
उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर पर्याप्त उपलब्ध डाटा की सहायता से बताया कि इस कृषि पद्धति को अपनाने से कृषि की लागत में कमी तथा किसानों की आय में वृद्धि होगी। उन्होंने शून्य लागत प्राकृतिक कृषि के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी तथा किसान समुदाय के लाभ के लिए नीति निर्माताओं को इस मॉडल को अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस कृषि तकनीक से लोगों को लाभ प्रदान करने में सहायता मिलेगी तथा जिन किसानों ने पहले ही इस तकनीक को अपना लिया है वे अपने उत्पादों के लिए बेहतर दाम प्राप्त कर रहे हैं।
राज्यपाल ने शून्य लागत प्राकृतिक कृषि पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) तथा परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के भाग के रूप में विचार करने के लिए नीति आयोग का आभार व्यक्त किया तथा आशा व्यक्त की कि इससे प्राकृतिक कृषि को एक सही दिशा में बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी।
नीति आयोग ने उत्तरी भारत के कई राज्यों में शून्य लागत प्राकृतिक कृषि को अपनाने व प्रोत्साहित करने की अनुसरणीय उपलब्धि अर्जित करने तथा कृषि की इस प्रणाली में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए आचार्य देवव्रत को विशेष तौर पर इस सम्मेलन में आमंत्रित किया, ताकि उनके समृद्ध अनुभव को अन्य हितधारकों से सांझा किया जा सके व वे इसके लाभ समझे व नीति दस्तावेज तैयार किया जा सके।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि कृषि क्षेत्र की दो योजनाओं-परम्परागत कृषि विकास योजना तथा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अन्तर्गत राज्य शून्य लागत प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों में 50 लाख किसान शून्य लागत प्राकृतिक कृषि पर कार्य कर रहे हैं। यह कृषि न केवल भारत बल्कि विश्व के लिए भी लाभकारी सिद्ध होने की संभावना रखती है।
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि हम फसलों में रसायन व खाद के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान को देख रहे हैं तथा प्राकृतिक कृषि खेती की पारम्परिक पद्धति है, जो कि पूर्ण रूप से सुरक्षित है।इस अवसर पर पदमश्री डॉ. सुभाष पालेकर ने किसानों की आय को दोगुना करने में शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की संभावना व चुनौतियों को उजागर किया।नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद, नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत, विभिन्न राज्यों व कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, कृषि विश्वविद्यालयों, संस्थानों के प्रतिनिधि, किसान व व्यवसायी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
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