( जसवीर सिंह हंस ) ट्रेफिक पुलिस गलियों में खड़ी होकर केवल दोपहिया वाहनों के चालान कर अपनी ड्यूटी पूरी कर रही है वही ट्रेफिक इंचार्ज लोगो से बतमीजी पर भी उतर आये है व यदि कोई वाहन पार्किंग में खड़ा कर कही पैदल भी जा रहा हो तो अपनी वर्दी कि धोस दिखने के लिए रोककर चालान करने कि धमकिया देने लग जाते है | व मिडिया दवारा टेफिक व्यवस्था सुधार कि खबरे प्रकाशित करने पर भी मिडिया कर्मियों को देखकर जल भुन जाते है |
‘अब कितनी सवारी भरोगे, चल पड़ो भाई, हमें देर हो रही है।’ इस पर जवाब मिलता है, ‘तकलीफ है तो दूसरी बस में आओ, हम तो तभी चलेंगे जब हमारी इच्छा होगी।’ यह कहासुनी बसों में हर रोज सुनने को मिलती है। बसें बस स्टैंड से ही ओवरलोड कर चलाई जाती हैं और यदि उसका विरोध करें तो बेवजह जलील होना पड़ता है। सड़कों पर दौड़ते वाहनों पर कोई कानून लागू नहीं होता।
ओवरलोडिंग बेखौफ जारी है, जिसके चलते दुर्घटना का भय अक्सर बना रहता है। ओवरलोडिंग के अलावा बसों की प्रतिस्पर्धा के चलते तेज रफ्तार पैदल चलने वालों के लिए बड़ी समस्या है। वहीं बसों से सवारियों के उतरने-चढ़ने के समय भी इन प्रतिस्पर्धाओं का खामियाजा अक्सर लोगों को भुगतना पड़ता है। कई मामले हो चुके हैं जब बस से उतरते समय सवारी पीछे से तेज रफ्तार आ रहे वाहन की चपेट में आ गई हो, उतरते समय गिर गई हो या फिर चलती गाड़ी से ओवरलोडिंग के चलते गिर गई हो।
ऐसे हादसों के बाद प्रशासन की सख्ती बढ़ जाती है और शहर में कानून सख्त हो जाते हैं। लेकिन फिर धीरे-धीरे स्थिति वही रफ्तार, ओवरलोडिंग और अव्यवस्था की बन जाती है। एचआरटीसी व पुलिस विभाग भी इस समस्या को रोकने के लिए दम तो भरते हैं लेकिन वह भी असल में इसमें नाकाम ही साबित हो रहे हैं।
ट्रैफिक व्यवस्था आम लोगों की जान पर भारी पड़ रही है। निजी बस ऑपरेटर कभी न सुधरने की कसम खा चुके हैं। बसों में ओवरलोडिंग, चालक द्वारा मोबाइल सुनते हुए गाड़ी चलाना और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ शहर में आम देखी जा सकती है। लोगों का कहना है कि प्रशासन को बस ऑपरेटरों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए, जिससे आम लोगों की जान को सुरक्षित किया जा सके।
इसके बावजूद प्रशासन बस ऑपरेटरों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। हिमाचल पथ परिवहन निगम के अनुसार बसों की समयसारिणी में कम से कम तीन मिनट का फासला जरूरी है, मगर वास्तविकता यह है कि बस ऑपरेटर अपनी सहूलियत के समय पर ही स्टॉपेज से निकलते हैं, जिस वजह से बसों में सवारियां उठाने को लेकर होड़ लगती है और आम लोगों की जान जोखिम में पड़ रही है।
ट्रैफिक पुलिस की ढील के कारण निजी बस ऑपरेटर मनमानी पर उतर आए हैं। ज्यादा सवारियां ले जाने के चक्कर से स्टॉपेज से बसें हिलती ही नहीं हैं। इस वजह से जिस सफर को तय करने में 15 मिनट का समय लगता है, वहां लोगों का आधे से पौना घंटा बर्बाद हो रहा है। यह हालत पूरे शहर की है। इसी वजह से बसों में ओवरलोडिंग हो रही है। बस ऑपरेटर अधिक मुनाफा कमाने के लिए उस समय तक स्टॉपेज से गाड़ी को नहीं चलाते जब तक बस पूरी तरह से भर न जाए। बस आपरेटरों की इस मनमानी का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। लोग समय पर अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाते और ओवरलोड बसों में जान हथेली में लेकर सफर करना पड़ता है।
सरकार ने एचआरटीसी की बसों में विद्यार्थियों के लिए मुफ्त बस सुविधा तो शुरू कर दी है। लेकिन बसों की कमी के चलते विद्यार्थियों को निजी बसों में सफर करना पड़ रहा है। कई ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली बसों में छात्रों को खड़े होकर सफर करना पड़ता है। बसों की कमी के कारण सैकड़ों विद्यार्थियों मुफ्त बस यात्रा से महरूम रह रहे हैं।
न वर्दी न नेम प्लेट : नियम यह है कि चालक-परिचालक को नेम प्लेट व वर्दी पहनना आवश्यक है, लेकिन यह कानून कागजों में ही लागू होता है। असल में कोई भी चालक-परिचालक नेम प्लेट व वर्दी में नजर नहीं आता। यह कानून आम लोगों की सुविधा के लिए बनाया गया है और इसका पालन न करने पर चालान करने का भी प्रावधान है लेकिन उस की किसी को परवाह नहीं है।
काल बनती प्रतिस्पर्धा और तेज रफ्तार : तेज रफ्तार से आगे बढ़कर सवारी उठाने की प्रतिस्पर्धा कई मर्तबा काल बनती आई है। इसके चलते न केवल वह लोग जो बसों से उतर रहे हैं बल्कि पैदल चलने वालों के लिए भी यह रफ्तार जान लेवा साबित होती है।
ओवरलोड व अव्यवस्थित एचआरटीसी बसे : एचआरटीसी बसे भी ओवरलोडिंग से अछूती नहीं हैं। वहीं इन टैक्सियों में वरिष्ठ नागरिकों को भी कोई तरजीह नहीं दी जाती। हालांकि परिवहन निगम के आदेशानुसार इन टैक्सियों में वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता देना अनिवार्य है, लेकिन अधिकतर टैक्सियों में यह नियम लागू नहीं होता। यही नहीं इन टैक्सियों के चलने का समय भी निर्धारित किया गया है, लेकिन अधिकतर से समय सारणी गायब है।
खतरे में डाली जाती है जान : ओवरलोडिंग से लोगों की जान खतरे मे डाली जा रही है। सरकारी और निजी बसों सहित टैक्सियों में ओवरलोडिंग बढ़ती जा रही है। प्रशासन ओवरलोडिंग पर लगाम कसने के लिए कोई कदम नहीं उठा रहा है। ओवरलोडिंग से ही कई हादसे घट रहे हैं। बस और एचआरटीसी बसों में भेड़-बकरियों की तरह सवारियों को भरा जाता है। निजी बसों में जब तक क्षमता से अधिक सवारियां नहीं होगी ।
सवारियों से बदतमीजी करते चालक-परिचालक : निजी बसों के चालक व परिचालक सवारियों के साथ बदतमीजी और लड़ाई-झगड़े के लिए उतारू हो जाते हैं। अगर सवारी कंडक्टर से टिकट मांग ले तो तब तो उसे जवाब मिलता है कि आप उस बस में सफर करें जिसमें टिकट मिलता है। हमारे पास कोई भी टिकट नहीं है। अगर किराया पांच रुपये हो तो और सवारी ने दस का नोट दिया है, तो पांच रुपये वापस लेने में परिचालक से कई बातें सुननी पड़ती हैं।
ओवरलोड ते स्पीड, गाड़ी चले टन टना टन : बस स्टैंड काउंटर से बसें अपने रूट पर समय के अनुसार ही निकलती हैं लेकिन रूट के दौरान बीच में आने वाले स्टेशनों में कई मिनटं तक खड़ी रहती हैं। कोई भी बस अपने समय के अनुसार नहीं चलती है। समय किसी और बस का होता है तो बस की किसी और की चल रही होती है। चालक-परिचालक बस में अधिक से अधिक सवारियां भर लेते हैं और फिर तेज रफ्तार से समय को कवर करने की कोशिश करते हैं।
ऐसे सुधर सकती है व्यवस्था
– बसों की संख्या बढ़ाई जाए।
– बसों का चेकिंग निरंतर की जाए।
– ओवरलोडिंग करने पर आरोपियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए।
– ओवरलोडिंग करने पर बस का रूट रद किया जाए।
– बसों पर निगरानी रखने के लिए उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन हो।
– छोटे क्षेत्रों में एचआरटीसी टैक्सी सुविधा शुरू की जाए।
– ट्रैफिक नियमों को सख्ती से लागू किया जाए।
– लोग स्वयं ओवरलोडिंग के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आगे आएं।
-बसों की समयसारणी दोबारा बनाई जाए।
सख्त एक्शन ले प्रशासन : शहर में ओवरलोडिंग की व्यवस्था को सुधारने के लिए न तो प्रशासन कुछ कर पा रहा है और न ही सरकार। लोगों को कहना है कि शिकायत भी करें तो किस सें। जब भी ओवरलोडिंग से कोई भी बड़ा हादसा घटित होता है तो प्रशासन जागता है। कुछ दिन तक हर बस की चेकिंग की जाती है। ट्रैफिक पुलिस ओवरलोडिंग के चालान काटती है, लेकिन निजी बसों में फिर ओवरलोडिंग की शिकायतें कम नहीं हो रही हैं। अगर लोग प्रशासन से शिकायत भी कर दें तो प्रशासन कहता है आप ही बता दें इस समस्या का हल क्या है। लोगों के अनुसार प्रशासन एवं सरकार को मिलकर कदम उठाने चाहिए, ताकि लोगों की जिदंगी खतरे में न डाली जाए।
लोगो का कहना कि ओवरलोडिंग काफी गंभीर समस्या है। एक तरफ शहर में छोटी बसें चलाई जाती हैं जिनमें दोगुनी सवारियां बिठाई जाती हैं। इसी वजह से हादसे होने के अधिक खतरे बढ़ जाते हैं। प्रशासन तभी आंखें खोलता है जब कोई अप्रिय घटना घट जाती है। शहर में बसों की संख्या काफी कम है और सवारियां अधिक हैं। लोगों ने अपने गंतव्य में तो पहुंचना ही होता है। लोगों के पास इतने पैसे तो होते कि रोज टैक्सी कर अपने गंतव्य तक जाएं।
शहर में ओवरलोडिंग तो होती है, लेकिन वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोई भी सीट का प्रबंध नहीं होता है। जो सीटे उनके लिए आरक्षित होती है, वहां पर कोई और ही बैठे होते हैं। वरिष्ठ नागरिक इसका शिकायत चालक-परिचालक से करते हैं, लेकिन फिर भी उनकी समस्या का हल नहीं हो पाता है। निजी बस चालकों की मनमानी और गुंडागर्दी बढ़ती जा रही है। प्रशासन को इस समस्या का हल करने के लिए उच्चस्तरीय कमेटी का गठन कर सुझाव लागू करने चाहिए।
ओवरलोडिंग, ओवर स्पीड दोनों के अधिक मामले निजी बसों में देखे जा सकते हैं। इसे रोकने के लिए ट्रैफिक पुलिस अहम भूमिका निभा सकती है। बसों की चेकिंग रोज की जानी चाहिए। जिस बस में ओवरलोडिंग पाई जाए, उसके चालक-परिचालक का लाइसेंस रद कर देना चाहिए। निजी बसों पर निगरानी रखने के लिए पूरे शहर में सीसीटीवी कैमरे लगने चाहिए।
लोग भी बनें जिम्मेदार : शहर में बस और टैक्सियों में बढ़ रही ओवरलोडिंग के लिए कहीं हद तक लोग भी जिम्मेदार हैं। कई बार बस भर चुकी होती है लेकिन फिर भी जबरन लोग उसमें चढ़ते रहते हैं। बस में भीड़ होने के बाबजूद लोग कहते हैं कि हम एडजस्ट कर लेंगे। चालक-परिचालकों का कहना है कि वे बस के भरने के बाद सवारियों को बिठाने का विरोध भी करते हैं तो यात्री गुस्सा हो जाते हैं।