(धनेश गौतम ) भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा देव सदन कुल्लू में कवि सम्मेलन का आयोजन किया। यह आयोजन भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा हिंदी पखवाड़े के उपलक्ष में आयोजित किया गया। कवि सम्मेलन में वरिष्ठ कवि जय देव विद्रोही मुख्यातिथि के रूप में उपस्थित रहे जबकि सम्मेलन की अध्यक्षता डाक्टर सूरत ठाकुर ने की। बरिष्ट अतिथि के रूप में सत्यपाल भटनागर,इंदु पटियाल व धनेश गौतम रहे। इस अवसर पर भाषा अधिकारी रेवती सैनी ने सभी कवियों का हार्दिक स्वागत किया।
कवि सम्मेलन में कवि केहर सिंह ने सफाई अभियान पर कटाक्ष करते हुए यहां भी सफाई वहां भी सफाई कचरा तो ज्यूं का त्युं है भाई कविता गाकर स्वच्छता अभियान की पोल खोली। वहीं कवियित्री इंदु पटियाल ने मेघा बरसा रे साहिब व फिकरों को सहते वेजुरवा हो गई हूं में गाकर वाहवाही लूटी। कवि किशन श्रीमान ने हिंदी पर विस्तार से चर्चा की। वहीं फिरासत खान ने मैं सिर्फ बोली ही नहीं व जयदेव विद्रोही ने हिंदी न बेचारी थी और न होगी पढ़कर खूब तालियां बटोरी। कवि रविंद्र पंवर ने हिंदी की लाचारी व लवलीन थरमाणी ने मैं कहां जाऊं कविता सुनाकर हिंदी व महिलाओं की व्यथा को बयां किया। दीपक कुलवी ने हिंदी भाषा पर सुंदर कविता सुनाई जबकि इंदु नवनीत भारद्वाज ने तुम सजाते पथ प्रीत का पुष्पों से बंदनवारों से कविता सुनाकर कवि सम्मेलन की शोभा बढ़ाई।
ईश्वरी दास शर्मा ने पुराण है हिंदी, दोतराम पहाड़िया ने हे वसुंधरे तुझे प्रणाम,शेरू बाबा ने फिर एक बार विश्वास में ली थी कविता सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। धनेश गौतम ने न छेड़ो दिल के तार, सत्यपाल भटनागर ने जब हिंदी दिवस आता है, शेरू मेहरूपा ने मुझ पर अंकुश मत रख कविता सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया । राजपाल कौशल व राजेंद्र पालमपुरी के अलावा शिव राज शर्मा ने भी कविताएं सुनाई। वहीं फिरासत खान ने मैं सिर्फ बोली ही नहीं, शिव सिंह पाल ने भाषा से मानव कविता सुनाकर माहौल को गर्म रखा।
उधर कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ सूरत ठाकुर ने सभी कवियों का हौसला अफजाई करते हुए कहा कि हिंदी न तो कभी बेचारी थी और न हिंदी की लाचारी है। आज विश्व में हिंदी भाषा का डंका बजता है और विश्व के करोड़ों लोग हिंदी पढ़ते लिखते व जानते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी का प्रचलन दूसरे देशों में भी बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि हाल ही में मोरिशश में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी पखवाड़े में उन्हें जाने का अवसर प्रदान हुआ तो पता चला कि दुनिया के कई देशों में हिंदी भाषा को लेकर बेहद रुचि है। मुख्यातिथि जयदेव विद्रोही ने कहा कि सभी कवियों को अपनी मूल कविता पर आना चाहिए कविता का सारांश या अभिप्राय बताने में समय नष्ट नहीं करना चाहिए। कविता ऐसी होनी चाहिए जिसके बोल से ही पाठक, दर्शक व श्रोतागण समझ सके कि कविता का भावार्थ क्या है।