मनोरोगियों का पुर्नवास पुलिस की जिम्मेवारी , हिमाचल हाईकोर्ट के है निर्देश

कुल्लू जिले की निरमंड तहसील के अंतर्गत बायल गांव से एक मनोरोगी को उमंग फाउंडेशन के कार्यकर्ता किशोरी लाल ने आज थाने पहुंचाया ताकि उसका इलाज और पुनर्वास हो सके। यह मनोरोगी  लंबे समय से वहां  बेसहारा  घूमता था और  डस्टबिन से  भोजन ढूंढकर खाता था।

फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 के अंतर्गत यह पुलिस की जिम्मेवारी है कि वह बेसहारा मनोरोगियों को संरक्षण में लेकर नजदीकी जुडियशल मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करें। इसके बाद मजिस्ट्रेट बेसहारा मनोरोगी को मनोचिकित्सक के पास जांच और इलाज के लिए भेजने के आदेश पारित करते हैं। उन्होंने कहा कि अब थाना ब्रो की पुलिस सोमवार को मनोरोगी को मजिस्ट्रेट के पास पेश करेगी। उमंग फाउंडेशन ने इस वर्ष की शुरुआत में सड़कों पर बेसहारा पड़े रहने वाले मनोरोगियों को बचाने का अभियान छेड़ा था।

इसके अंतर्गत अनेक मनोरोगियों को इलाज व पुनर्वास के लिए शिमला स्थित राज्य मानसिक रोग अस्पताल में भेजा जा चुका है। उल्लेखनीय है की मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 4 जून 2015 को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया था। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सभी पुलिस अधीक्षकों को आदेश दिए थे कि बेसहारा मनोरोगियों को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम की धारा 23 और 24 के अंतर्गत संरक्षण में लेकर मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जाए ताकि ऐसे मनो रोगियों का इलाज और पुनर्वास संभव हो सके।

बायल में  में मिले मनोरोगी के बारे में अजय श्रीवास्तव ने पिछले महीने कुल्लू के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखा था कि वह उचित कार्यवाही सुनिश्चित करें। लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया और  आज सामजिक कार्यकर्ता किशोरीलाल ने उस मनोरोगी को खुद थाने पहुँचाया। किशोरी लाल अभी कुछ दिन पूर्व रामपुर में मिले बेसहारा मनोरोगी को इलाज के लिए शिमला भिजवा चुके हैं।

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