शिमला में मीडिया के प्रतिनिधियों से बात करते हुए नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि प्रदेश में आई आपदा से भारी तबाही हुई है। आपदा प्रभावितों को सरकार की तरह से राहत पैकेज के तहत ही धनराशि उपलब्ध करवाई जाए, क्योंकि जन और धन की बहुत हानि हुई है। चाहे इस साल की आपदा हो या पिछले साल की, नुक़सान को एक नज़र से ही देखना होगा। सभी जगहों पर राहत और बचाव कार्य और तेज करने की आवश्यकता है। जिससे लापता लोगों को जल्दी से जल्दी तलाशा जा सके। सभी प्रभावितों को तत्काल सहायता प्रदान की जाए। केंद्र सरकार सहयोग कर रही है और आगे भी करेगी। प्रधानमंत्री से जब मैं मिला तो उनके पहले शब्द ही यही थे कि हिमाचल को क्या हो गया। इस बार भी इतनी बड़ी त्रासदी चिंता का विषय है। उन्होंने हर प्रकार से प्रदेश के सहयोग का भरोसा दिया है।
नेता प्रतिपक्ष ने हिम केयर को निजी अस्पतालों में बंद करने के सवाल के जवाब में कहा कि मुख्यमंत्री संवेदनहीन बातें कर रहे हैं। यदि किसी निजी अस्पताल में किसी तरह का घोटाला हुआ है तो सरकार उसके ख़िलाफ़ तय क़ानून के तहत कार्रवाई करे। मॉनिटरिंग की व्यवस्था को मज़बूत करे। निर्धारित नियम बनाए और कठोर कार्रवाई करे। प्रक्रिया में कहीं कोई ख़ामी है तो उसे और पारदर्शी बनाया जाए। लेकिन सरकार को बंद करने में ही सुख मिलता है। यदि किसी व्यवस्था में कोई ख़ामी है, तो उससे दुरुस्त किया जाता है। सरकारी अस्पताल में कितनी लंबी लाइनें हैं। एमआरआई और सीटी-स्कैन के लिए छ: महीने के बाद की तारीख़ें मिल रही हैं। जिस मरीज़ को तत्काल इलाज की आवश्यकता होगी तो क्या वह सरकारी अस्पताल के महीनों बाद की तारीख़ों का इंतज़ार करेगा या जहां पर उसे इलाज मिलेगा, वहीं पर अपना इलाज करवाएगा। कुछ फ़ैसले लेते वक़्त संवेदनशीलता दिखानी होती है। लेकिन मुख्यमंत्री ने नहीं दिखाई। उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि किसी बीमारी से परेशान मरीज़ को इस फ़ैसले से कितनी परेशानी उठाने पड़ेगी।
शिमला में मीडिया के प्रतिनिधियों से बात करते हुए नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि प्रदेश में आई आपदा से भारी तबाही हुई है। आपदा प्रभावितों को सरकार की तरह से राहत पैकेज के तहत ही धनराशि उपलब्ध करवाई जाए, क्योंकि जन और धन की बहुत हानि हुई है। चाहे इस साल की आपदा हो या पिछले साल की, नुक़सान को एक नज़र से ही देखना होगा। सभी जगहों पर राहत और बचाव कार्य और तेज करने की आवश्यकता है। जिससे लापता लोगों को जल्दी से जल्दी तलाशा जा सके। सभी प्रभावितों को तत्काल सहायता प्रदान की जाए। केंद्र सरकार सहयोग कर रही है और आगे भी करेगी। प्रधानमंत्री से जब मैं मिला तो उनके पहले शब्द ही यही थे कि हिमाचल को क्या हो गया। इस बार भी इतनी बड़ी त्रासदी चिंता का विषय है। उन्होंने हर प्रकार से प्रदेश के सहयोग का भरोसा दिया है।
नेता प्रतिपक्ष ने हिम केयर को निजी अस्पतालों में बंद करने के सवाल के जवाब में कहा कि मुख्यमंत्री संवेदनहीन बातें कर रहे हैं। यदि किसी निजी अस्पताल में किसी तरह का घोटाला हुआ है तो सरकार उसके ख़िलाफ़ तय क़ानून के तहत कार्रवाई करे। मॉनिटरिंग की व्यवस्था को मज़बूत करे। निर्धारित नियम बनाए और कठोर कार्रवाई करे। प्रक्रिया में कहीं कोई ख़ामी है तो उसे और पारदर्शी बनाया जाए। लेकिन सरकार को बंद करने में ही सुख मिलता है। यदि किसी व्यवस्था में कोई ख़ामी है, तो उससे दुरुस्त किया जाता है। सरकारी अस्पताल में कितनी लंबी लाइनें हैं। एमआरआई और सीटी-स्कैन के लिए छ: महीने के बाद की तारीख़ें मिल रही हैं। जिस मरीज़ को तत्काल इलाज की आवश्यकता होगी तो क्या वह सरकारी अस्पताल के महीनों बाद की तारीख़ों का इंतज़ार करेगा या जहां पर उसे इलाज मिलेगा, वहीं पर अपना इलाज करवाएगा। कुछ फ़ैसले लेते वक़्त संवेदनशीलता दिखानी होती है। लेकिन मुख्यमंत्री ने नहीं दिखाई। उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि किसी बीमारी से परेशान मरीज़ को इस फ़ैसले से कितनी परेशानी उठाने पड़ेगी।
जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकार ने पिछले साल के हादसे से कोई सबक़ नहीं सीखा। पिछले साल ब्यास में आई त्रासदी के बाद कई जगह पर बजरी और रेता जमा होने से ब्यास की धारा में परिवर्तन हो गया था, जिसे सही करने के लिए सरकार ने टेंडर जारी किए। सरकार ने बहुत सारा पैसा मलबे को हटाने के लिए खर्च किया। टेंडर लेने वालों ने करोड़ों रुपए की बज़री और रेता बेचकर कमाए लेकिन ब्यास की हालत जस की तस ही रही। ब्यास इस बार फिर उसी पुराने ढर्रे पर बह रही है, जिससे नुक़सान होने की संभावना बहुत ज़्यादा है। इतना सब कुछ होता रहा लेकिन सरकारी महकमें ने इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के बजाय आंखे बंद कर ली। यह आंखे क्यों बंद की गये, इसके पीछे कौन से लोग ज़िम्मेदार हैं। मुख्यमंत्री को स्वयं इसका जवाब देना चाहिए। ब्यास की परिवर्तित धारा की वजह से जो नुक़सान होगा उसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ सरकार ज़िम्मेदार है।