पशुपालन विभाग के प्रवक्ता ने आज यहां जानकारी देते हुए बताया कि रैबीज एक जानलेवा बिमारी है जो मुख्यतः कुते द्वारा काटे जाने पर होती है जोकि बिल्ली, नेवले, चमगादड, लोमड़ी, बन्दर आदि से भी पालतु जानवरों व मनुष्य मंे फैल सकती है तथा इसका कोई ईलाज नही है। उन्होंने बताया कि रैबीज बिमारी के कीटाणु पागल कुते के थूक में होते है तथा उनके द्वारा काटने से मनुष्य या दूसरे कुतों आदि में यह बिमारी फैलती है जिससे प्रभावित व्यक्ति या पशु में पागलपन के लक्षण आ जाते है जिसमें पानी से डर लगता है तथा वह दुसरों को काट सकता है। यह बिमारी कुते द्वारा काटे जाने से कई वर्षों बाद भी हो सकते है।
उन्होंने बताया कि रैबीज से बचाव का एक मात्र तरीका पालतु कुतों, बिल्ली आदि को रैबीज निरोधक टीके लगायें जायं, उन्हें आवारा कुतों के साथ खेलने/लडने न दें व आवारा कुतांे से उनके बर्तन अलग रखें। उन्होंने बताया कि कुते के काटने पर जख्म को खुले पानी तथा साबुन से धोयें और उस पर तेल मिर्च आदि न लगायें न ही जादू टोने पर विश्वास करें। उन्होंने कहा कि जख्म पर कोई भी एण्टी सैपटिक लोशन लगायें। उन्होंने बताया कि डॉक्टर की सलाह से एण्टीं रैबीज वैक्सीन के टीके लगवाएं। उन्होंने बताया कि चिकित्सा के क्षेत्र में हुई उन्नति के कारण जहां पहले 14 टीके लगाए जाते थे अब 6 ही टीके लगाएं जाते है।
उन्होंने बताया कि अपने पालतु कुतों को हर साल नियमित रूप से रैबीज निरोधक टीके लगवायंे तथा टीके प्रशिक्षित पशुचिकित्सक से लगवाएं। उन्होंने बताया कि पालतु कुतों को आवारा कुतों के काटने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से टीके लगवायें। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि अपने इलाके के आवारा कुतों को भी यह टीके लगवादें ताकि उस इलाके के निवासी व पालतु जानवर भी इस जानलेवा बिमारी से बच जाएं।
उन्होंने बताया कि पशु पालन विभाग जिला सिरमौर द्वारा विश्व रैबीज दिवस पर आवारा तथा पालतु कुतों को टीके निःशुल्क लगाने की योजना है। जिसमें आवारा कुतों का बंधीकरण करके यह टीके लगाएं जाते है ताकि उनकी आबादी पर नियंत्रण रखा जा सके। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि जिला की प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों मंे भी लोगों को रैबीज के निःशुल्क टीके लगाए जाते है।