( अनिलछांगू ) रामसर बेटलैंड पौंग झील के मध्य में पांडवों द्वारा स्वर्ग को जाने के लिए अज्ञातवास के दौरान निर्मित बाथू दी लड़ी नामक ऐतिहासिक स्थल विश्व के मानचित्र पर अपनी अलग ही पहचान बना चुका है।बाथू दी लड़ी सालभर के 10 महीने पानी के अंदर रहता है तथा जून-जुलाई माह में ही पौंग झील के पानी से बाहर आता है।इन दो महीनों में ही असंख्य पर्यटक दर्शनों के लिए आते हैं।मौजूदा समय में आएदिन इस ऐतिहासिक स्थल में हिमाचल प्रदेश के अलावा बाहरी राज्यों व विदेशों से भी पर्यटक आते हैं तथा माथा टेकते हैं।
रोजाना 100 से 200 वाहन उक्त स्थल पर पर्यटकों को लेकर आते हैं तथा मन्दिर में रोजाना 4000 से 5000 रुपए का चढ़ावा चढ़ता है।बाथू दी लड़ी में पैसों को डालने के लिए गल्ला लगाया गया है तथा शाम के समय मन्दिर के गल्ले को कोई ले जाता है।गल्ला को कौन ले जाता है और एकत्रित पैसों को कौन रख लेता है व कहां लगाया जाता है, इस बारे में कोई भी नहीं जानता।सूत्रों के अनुसार तथाकथित कुछ लोगों ने ऐतिहासिक स्थल पर अपना बर्चस्व कायम कर रखा है।उक्त लोगों ने मंदिर में एक पुजारी रखा गया है जिसको प्रतिदिन 500 रुपए दिए जाते हैं जबकि शेष राशि को तथाकथित लोग आपस में बांट लेते हैं तथा ऐसा करके लाखों रुपए डकार रहे हैं।
लोगों ने कहा कि इसके अलावा बन्द सीजन में उक्त लोग पर्यटकों को किश्ती में घुमाते हैं और इस एवज में 100 से 500 रुपए वसूल कर रहे हैं।बन्द सीजन में किश्ती को चलाना प्रतिबंधित होता है परंतु फिर भी ऐसा हो रहा है।लोगों ने मांग की है कि उक्त क्षेत्र वन्य प्राणी विभाग के अधीन आता है तो वन्य प्राणी विभाग व पर्यटन विभाग इसको अपने अधीन ले और इनकम को रेन्सर दी गढ़ी को विकसित करने पर लगाए ताकि पर्यटन की दृष्टि से रेन्सर दी गढ़ी पहले से ज्यादा विकसित हो सके।
इस बारे में वन्य प्राणी विभाग हमीरपुर के डीएफओ कृष्ण कुमार से बात हुई तो उन्होंने कहा कि फिलहाल इस बारे में जानकारी नहीं है।उन्होंने कहा कि जल्द ही विभागीय टीम को भेजा जाएगा।उन्होंने कहा कि विभाग ने किसी भी कमेटी को ऑथोराइज़्ड नहीं किया गया है अगर कोई तथाकथित कमेटी ऐसा कर रही है तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।