मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अर्की विधानसभा क्षेत्र से भरा पर्चा

तमाम अटकलों पर विराम लग गया है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अर्की विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के लिए नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। इस दौरान उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह व बेटा विक्रमादित्य के साथ-साथ हर्ष महाजन भी मौजूद रहे। सीएम के नामांकन दाखिल करने के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि ठियोग निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर कौन नामांकन दाखिल करेगा, क्योंकि पहले यह भी चर्चा थी कि सीएम ठियोग से चुनाव लडेंगे। बकायदा स्टोक्स ने विधिवत तरीके से सीएम को सीट सौंप दी थी।

सनद रहे कि कांग्रेस ने अब तक नौ सीटों पर पार्टी प्रत्याशी तय नहीं किए हैं। इसमें ठियोग भी एक है। संभावना यह भी थी कि सीएम अर्की के साथ-साथ ठियोग से भी नामांकन दाखिल कर सकते हैं। बहरहाल 1967 के बाद से अगर आंकलन किया जाए तो अर्की विधानसभा क्षेत्र को भाजपा ने चार बार जीता है। जबकि 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर एचएस पाल जीते थे। 1972 व 1977 में एलआरपी व जेएनपी ने चुनाव जीता था। 1982 में पहली बार भाजपा ने जीत हासिल की थी। तब नगीन चंद्र पाल विजयी हुए थे। 1977 में भी नगीन चंद पाल ने ही चुनाव जीता था।

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1985 में कांग्रेस ने भाजपा से सीट छीनी। तीसरी बार भाजपा के टिकट पर नगीन चंद पाल फिर विधायक बने थे। इसके बाद कांग्रेस के धर्मपाल ठाकुर ने 1993 से 2003 तक कांग्रेस के टिकट पर हैट्रिक बनाई थी। पिछले दो विधानसभा चुनाव में भाजपा के गोविंद राम शर्मा विजयी रहे। बहरहाल कांग्रेस ने यह सीट चार बार जीती तो भाजपा ने भी चार बार जीत हासिल की है। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने युवा चेहरे के तौर पर संजय अवस्थी को टिकट दिया था, जो 2075 मतों के अंतर से हारे थे।

 

2007 में सोनिया गांधी के कुक के बेटे को मिला था टिकट.

अर्की विधानसभा क्षेत्र में 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एआईसीसी चीफ सोनिया गांधी के कुक के बेटे को टिकट दिया था, जिन्हें बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। उस समय कांग्रेस से बगावत कर धर्मपाल ठाकुर ने चुनाव लड़ा था। तब ठाकुर 14,181 मत हासिल करने में कामयाब रहे थे। इसी चुनाव में रामपुर सीट पर सोनिया गांधी के कमांडो रहे नंद लाल को भी टिकट दिया गया था, जो चुनाव जीत गए थे। इसके बाद नंदलाल ने 2012 का चुनाव भी जीत लिया। रामपुर सीट कांगे्रस की परंपरागत रही है, यहां से 1951 के बाद से आज तक कोई भी भाजपा का प्रत्याशी नहीं जीत पाया है। 1977 में केवल जेएनपी ने कांग्रेस विरोधी लहर में सीट जीती थी।

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