(जसवीर सिंह हंस ) हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में दूरदराज के राज्यों से भटक कर आ गए बेसहारा मनोरोगियों के चेहरों पर मुस्कान लौटाने के लिए एक अनूठा अभियान शुरू किया गया है। उमंग फाउंडेशन नामक जन कल्याण ट्रस्ट ने सड़क के किनारे असहाय स्थिति में रहने वाले मनोरोगियों को उन के संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए पहल की है। कोई भी व्यक्ति किसी बेसहारा व बेघर मनोरोगी को असुरक्षित हालत में देख कर संस्था को सूचित कर सकता है। फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर अजय श्रीवास्तव तुरंत कानूनी तर्कों के साथ उसकी आवाज पुलिस व प्रशासन तक पहुंचाते हैं ताकि उसकी मनोचिकित्सा और पुनर्वास सुनिश्चित किया जा सके।
उन्होंने बताया कि एक न्यूज़ वेबसाइट khabronwala.co.in के माध्यम से उनको पता चला की तो कि पौंटा साहिब में सड़क के किनारे रहने वाली एक असहाय मनोरोगी महिला रह रही है व उन्होंने इसके संपादक जसवीर सिंह हंस से इस बारे में बात कर अधिक जानकारी जुटाई व इस बारे में बारे में उन्होंने सिरमौर के उपायुक्त को पत्र लिखा और फोन पर भी अनुरोध किया कि उसके अधिकारों का संरक्षण किया जाए। इसके बाद उन्होंने सिरमौर की पुलिस अधीक्षक से भी फोन पर बात की। लेकिन करीब 20 दिन बीत जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। वह महिला अभी भी असहाय हालत में सड़क के किनारे रहती है। यही नहीं एक अन्य मनोरोगी महिला भी वहीं पास में आकर रहने लगी है। इसके बारे में भी एसपी और डीसी को पत्र लिखा गया है।
मगर बेघर व असहाय मनोरोगियों के प्रति नकारात्मक सरकारी रवैया देख कर उमंग फाउंडेशन ने राज्य के मुख्य सचिव वीसी फारका को पत्र लिखकर मांग की है कि प्रदेश में पुलिस व प्रशासन को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 की धारा 25 के कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए जाएं। इस कानून के अंतर्गत असुरक्षित बेसहारा मनोरोगी की सूचना किसी व्यक्ति या संस्था से मिलने पर पुलिस का दायित्व है कि वह उस मनोरोगी को संरक्षण में लेकर जूडिशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करे। अदालत के आदेश पर उसे मनोचिकित्सा के लिए सरकारी खर्च पर अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।
सड़क के किनारे गुजर बसर करने वाले बेसहारा मनोरोगी का पता चलते ही संस्था के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव तुरंत जिले के पुलिस अधीक्षक और उपायुक्त को पत्र लिखकर व फोन करके मांग करते हैं कि बेसहारा एवं असुरक्षित मनोरोगी के मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए कानूनी कदम उठाए जाएं।उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव ने बताया कि अभी तक पुलिस व प्रशासन का रवैया आमतौर पर नकारात्मक है। बेघर मनोरोगियों के मौलिक अधिकारों का लगातार उल्लंघन होने से उनका जीवन खतरे में रहता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में जीवन जीने के मौलिक अधिकार की व्याख्या करते हुए कहा है कि इसमें हर व्यक्ति को सुरक्षित आश्रय, इलाज और भोजन का अधिकार शामिल है।
राजधानी शिमला के दो बेसहारा मनोरोगियों के बारे में शिमला के उपायुक्त को अजय श्रीवास्तव ने पत्र लिखकर तथा फोन पर विस्तार से बताया। इसकी जानकारी उन्हें सोशल मीडिया से मिली थी। लेकिन उपायुक्त ने एक मनोरोगी को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम की धारा 25 की अनदेखी कर के ढली सब्जी मंडी के पास से सीधे बसंतपुर के वृद्ध आश्रम में भिजवा दिया। जबकि उसको जुडिशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करके अग्रिम कार्यवाही का आदेश लिया जाना था। दूसरा मनोरोगी कार्ट रोड से एजी चौक के रास्ते में विधानसभा के गेट पर बैठा रहता था। उस मामले में भी कानून तहत तुरंत कार्यवाही नहीं की गई।अब वह मनोरोगी कहीं और चला गया है।
उन्होंने बताया कि उनके फ़ोन करने पर ठियोग के एसडीएम ताशी संडुप ने एक बेसहारा मनोरोगी युवक को तुरंत मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश कराने के बाद शिमला के राज्य मनोरोग अस्पताल में भर्ती कराया। इसी तरह सोलन जिले के उपायुक्त राकेश कंवर ने श्रीवास्तव का पत्र मिलते ही अधरंग और गैंगरीन के शिकार एक बुजुर्ग साधु को मेडिकल चेकअप के बाद वृद्ध आश्रम भेजा।सोशल मीडिया से अजय श्रीवास्तव को जानकारी मिली कि कुल्लू जिले के बायल गांव, तहसील निरमंड, में एक मनोरोगी बेसहारा हालत में सड़क के किनारे रहता है। उन्होंने कुल्लू के पुलिस अधीक्षक और उपायुक्त को पत्र लिखकर कानून के अनुसार उक्त मनोरोगी को सहायता उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है। सोलन जिले के चमाकड़ी पुल के पास बस स्टैंड पर बने रेन शेल्टर में रह रहे बीमार मनोरोगी को भी बचाने के लिए सोलन के उपायुक्त को उमंग फाउंडेशन ने पत्र भेजा है।वहां ढाबा चलाने वाले संवेदनशील संजय ठाकुर काफी समय से उसकी मदद कर रहे हैं।
मुख्य सचिव वीसी फारका को लिखे पत्र में उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष ने राज्य में बेसहारा मनोरोगियों के बारे में कानूनी प्रावधानों के लागू न किए जाने पर गंभीर चिंता जताई है।उन्होंने मांग की है की सभी पुलिस अधीक्षकों और उपायुक्तों को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए जाएं। शिमला के मनोरोग अस्पताल में ज्यादा मरीजों को भर्ती करने के लिए उचित व्यवस्था करने की मांग भी उन्होंने की है। अभी इस अस्पताल में सिर्फ 50 मरीज ही रह सकते हैं। आजकल वहां 56 मरीज भर्ती हैं। उन्होंने पुलिस बलों को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाने के लिए