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मुख्यमंत्री ने जलवायु परिवर्तन तथा हिमालय में सिकुड़ते ग्लेशियरों पर चिन्ता व्यक्त की

JASVIR SINGH HANS by JASVIR SINGH HANS
7 years ago
in हिमाचल प्रदेश
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हिमाचल प्रदेश विधानसभा तथा राज्य पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा बुधवार सांय यहां विधायकों एवं नीति निर्माताओं के लिए ‘हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन’ पर संयुक्त रूप से ऑरियनटेशन कार्यशाला का आयोजन किया गया।
मुख्यमंत्री श्री जय राम ठाकुर ने कार्यशाला में संबोधित करते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश हिमालयन पर्वतीय पारिस्थितिकी का हिस्सा होने के कारण यहां प्राकृतिक जल संसाधनों की एक बड़ी श्रृंखला मौजूद है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और घटते हिमालयी ग्लेशियर राज्य के लिए चिन्ता का विषय हैं। उन्होंने कहा कि मॉनसून के महीनों में भी हरित आवरण का नुक्सान तथा भू-जल में कमी जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है। उन्होंने कहा कि मौसम परिवर्तन रिपोर्ट पर अन्तर राजकीय पैनल के अनुसार पिछले 20 वर्षों के दौरान धरती के तापमान में दो डिग्री की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला गंगोत्री ग्लेशियर हर वर्ष 30 मीटर की दर से कम हो रहा है।
श्री जय राम ठाकुर ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण का प्रहरी होने के नाते हिमाचल प्रदेश ने इस क्षेत्र में नए मील के पत्थर स्थापित किए हैं तथा देश के अन्य राज्यों को इसका अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने राज्य के लिए एक पर्यावरण मास्टर प्लान तैयार किया है। हिमाचल प्रदेश देश का एकमात्र राज्य है जो जलवायु परिवर्तन पर शोध के उपरान्त गांव तथा पंचायत स्तर तक अनुकूलन योजना को लागू कर रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि किसानों तथा बागवानों द्वारा रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा रसायनों का अत्याधिक उपयोग भी पर्यावरण अवक्रमण का कारण है। उन्होंने किसानों से आय बढ़ाने तथा पर्यावरण संरक्षण में सहयोग करने के लिए शून्य लागत कृषि अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने राज्य पर्यावरण, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर मॉडल ईको विलेज योजना का शुभारम्भ किया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के न्यायपूर्ण उपयोग के माध्यम से मानव पारिस्थितिकी फुट प्रिंट को कम करने के लिए पर्यावरण की दृष्टि से जिम्मेदार व्यक्तियों तथा सामूहिक प्रयासों पर आधारित सतत् विकास के आदर्श के रूप में गांवों को प्रदर्शित करना है। पहले चरण में राज्य के पांच गांवों को चयनित किया गया है। इनमें बिलासपुर ज़िले में टापरा, सिरमौर ज़िले में देथल, मण्डी ज़िले में जंजैहली, किन्नौर ज़िले में कामरू तथा शिमला ज़िले में चारू गांव शामिल हैं।
उन्होंने इस अवसर पर मॉडल ईको-ग्राम दिशा निर्देश, जलवायु परिवर्तन असुरक्षा आकलन रिपोर्ट-ब्यास नदी बेसिन कुल्लू, जेंडर रिस्पॉंसिव अडेप्टेशन के लिए मार्ग प्रशस्त करना तथा हिमालय में अनुकूलन व जलवायु परिवर्तन के ज्ञान पर सूचना विवरणिका को भी जारी किया। मुख्यमंत्री ने चुने हुए प्रतिनिधियों से कार्यशाला में हासिल जानकारी का अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार करने का आग्रह किया ताकि मौसम परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों तथा पर्यावरण अवक्रमण के बारे में लोगों को जागरुक किया जा सके।
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल ने कहा कि मौसम परिवर्तन तथा पर्यावरण संरक्षण विश्वभर में ज्वलन्त मुद्दे हैं और इस समस्या के शीघ्र समाधान की आवश्यकता है ताकि स्थिति हमारे नियंत्रण से बाहर न हो। उन्होंने कहा कि इतने बड़े स्तर की कार्यशालाएं मौसम परिवर्तन के इस ज्वलन्त मुद्दे के बारे में आम जन-मानस को जागरुक करने में मद्दगार सिद्ध होंगी। उन्होंने कहा कि हमारी पुरातन भारतीय संस्कृति भी हमें प्रकृति का सम्मान करने तथा इसके कम से कम दोहन की शिक्षा देती है।
स्विट्जरलैंड के राजदूत डॉ. एंड्रेस बॉम ने कहा कि स्विट्जरलैंड तथा हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी हैं। उन्होंने कहा कि स्विट्जरलैंड तथा हिमाचल प्रदेश दोनों ही पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण हैं तथा यहां बड़ी संख्या में ग्लेशियर विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण पर मौसम परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए हम दोनों बेहतर तालमेल तथा आपसी सहयोग के साथ कार्य कर सकते हैं। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना की।
नाबार्ड के अध्यक्ष डॉ. हर्ष कुमार भानवाला ने कहा कि जीवन के अस्तित्व तथा मानवता पर मौसम परिवर्तन के प्रभाव के बारे में लोगों को जागरूक करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मौसम परिवर्तन के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव से निपटने के लिए परियोजनाएं तैयार की जा सकती हैं, जिसके लिए उन्होंने नाबार्ड द्वारा वित्तपोषण की बात कही। उन्होंने कहा कि नाबार्ड द्वारा आरआईडीएफ के तहत् राज्य को करोड़ों रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आरआईडीएफ वित्तपोषण के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन पर विस्तृत परियोजनाएं तैयार की जा सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन जी.आई.जैड. (भारत) के निदेशक डॉ. आशीष चतुर्वेदी ने इस अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर प्रस्तुति देते हुए कहा कि हमें जलवायु परिवर्तन पर परियोजनाओं के क्रियान्वयन तथा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राज्य में क्षमता निर्माण कार्यक्रम पर विशेष बल दिया जा रहा है तथा पंचायत स्तर तक क्षमता निर्माण को मजबूत बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रो. ए.के. गोसांई ने ‘हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन व जल स्त्रोतों के प्रबन्धन के लिए नीति व योजना’ पर प्रस्तुति देते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश में वर्षा पर किए गए अध्ययन दर्शाते हैं कि वर्ष भर में कुल वर्षा व बरसात के दिनों में बारिश में भारी कमी हुई है। इससे प्रदेश के जल स्त्रोतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि हमें पर्यावरण पर मौसम परिवर्तन के प्रभाव पर जल संसाधनों की उपलब्धता के लिए राज्य की प्रत्येक नदी तटों का विश्लेषण करना चाहिए ताकि नई अनुकूलन कार्य नीति तैयार की जा सके।
भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलुरू के डॉ. अनिल कुलकर्णी ने हिमालयी ग्लेशियरों व जलवायु परिवर्तन पर विस्तृत प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि हिमालय के अधिकतर ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं और हमें इन्हें बचाना होगा। उन्होंने कहा कि यदि पर्यावरण संरक्षण व ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए कोई कदम न उठाए गए तो वर्ष, 2050 तक ग्लेशियर अदृश्य हो जाएंगे, जिसके भयावह परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि ग्लेशियरों के पिछलने से झीलें तैयार हो रही है जो खतरनाक हो सकती है। उन्होंने कहा कि हम हिमालयी ग्लेशियरों को बचा सकते हैं यदि विश्व के सभी मुख्य देश उनके संबंधित अनुबंध उद्देश्यों को कार्यान्वित करने के लिए भारत द्वारा प्रस्तुत उदाहरण का अनुसरण करें।
टेरी के महानिदेशक श्री अजय माथुर ने अपनी प्रस्तुति देते हुए कहा कि वन सम्पदा व जल स्त्रोतों के संरक्षण के लिए कार्बन पृथक्करण योजना को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के प्रयास सर्वोच्च स्तर पर किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रों का पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाने के लिए इलैक्ट्रिक बसों का प्रयोग और कचरे के निपटान के लिए संयंत्रों का निर्माण जैसी पहल आवश्यक है। उन्होंने कहा कि क्योंकि हिमाचल प्रदेश एक फल राज्य है इसलिए कृषि उपज बढ़ाने और रासायनिक खादों का न्यूनतम प्रयोग करने के लिए विशेषज्ञों से राय ली जानी चाहिए। उन्होंने राज्य में हरित आवरण की वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्बन क्रेडिट योजना लागू करने पर भी बल दिया।
पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीमती मनीषा नंदा ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है और हमें इस चुनौती से निपटने के लिए आपसी समन्वय के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो मानवता का वजूद खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के लिए कारगर रणनीति तैयार करने के साथ-साथ इसके बारे में व्यापक जागरूकता उत्पन्न करने के लिए भी कदम उठाने होंगे।
श्रीमती नन्दा ने कहा कि राज्य विज्ञान पर्यावरण एवं प्रौद्योगिकी विभाग राज्य में पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक रूप से कार्य करना प्रत्येक नागरिक का दायित्व है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए जा रहे प्रयास देश के अन्य राज्यों के लिए मार्गदर्शक हो सकते हैं। मंत्रिमण्डल के सदस्य, कांग्रेस विधायक दल के नेता श्री मुकेश अग्निहोत्री, विधायकगण, नगर निगम शिमला की महापौर श्रीमती कुसुम सदरेट, मुख्य सचिव श्री विनीत चौधरी, अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रधान सचिव, सचिव तथा राज्य सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
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