( धनेश गौतम ) चीन अधिकृत तिब्बत में स्थित पारछु झील का खतरा अभी हिमाचल प्रदेश के लिए टला नहीं है। गर्मी का मौसम आते ही अब झील के खतरे से प्रदेश के लोग जहां खौफ में है वहीं, प्रदेश के वैज्ञानिक व पर्यावरण विभाग भी सर्तक हो गया है। देश का पर्यावरण मंत्रालय भी पूरी तरह से झील पर नजर बनाए हुए हैं। प्रदेश व देश के पर्यावरण मंत्रालय लगातार झील की मॉनिट्रिंग सैटेलाईट सिस्टम से कर रहे हैं कि झील का मुहाना किस स्थिति में है और झील में पानी किस स्तर पर बढ़ रहा है।
इस बात का खुलासा सैंटर फॉर मीडिया स्टडी के धर्मशाला स्थित सेमिनार में हो रहा है। यहां पर तीन दिवसीय राज्य स्तरीय मीडिया स्टडी सेमिनार में सैंटर फॉर मीडिया स्टडी की हैड एडवोकेसी अनु आनंद के नेतृत्व में जलवायु परिवर्तन से प्रदेश पर क्या प्रभाव पड़ रहा है के बारे में वैज्ञानिकों से रूबरू करवाया गया है। पर्यावरण मंत्रालय हिमाचल प्रदेश के प्रिंसीपल सचिव डीसी राणा ने बताया कि पारछु झील पर उनकी पूरी नजर है और सारी जानकारी केंद्र व संबंधित संस्थानों को दी जा रही है।
उन्होंने कहा कि हालांकि अभी पारछु झील से इतना खतरा अभी तक नजर नहीं आ रहा है लेकिन गर्मियां बढ़ते ही इस खतरे को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। प्रिंसीपल साईंटीफिक ऑफिसर स्टेट सेंटर ऑन क्लाईमैंट चेंच के डॉ. एसएस रंधावा ने बताया कि वे सेंसर रिमोटिंग सैटेलाईट सिस्टम से लगातार पारछु झील पर नजर बनाए हुए है। उन्होंने बताया कि पारछु झील में गर्मी के मौसम में कभी भी पानी बढ़ सकता है और जलस्तर बढऩे से झील के मुहाने टूटने का डर रहता है यदि मुहाने टूट गए तो स्पीति घाटी से लेकर बिलासपुर तक ब्यास नदी के किनारे खतरा रहता है।
गौर रहे कि पारछु झील चीन अधिकृत तिब्बत में स्थित है इसलिए भारत के मंत्रालयों को सही जानकारी लेने में परेशानी रहती है। भारत सिर्फ सैटेलाईट सिस्टम से ही इसकी जानकारी लेता रहता है। वर्ष 2004 में पारछु में भारी भू-स्खलन होने से झील बन गई थी और वर्ष 2005 तक झील पानी से पूरी तरह से भर गई थी और मुहाने टूटने से प्रदेश में तबाही मची थी।
स्पीति घाटी से लेकर बिलासपुर तक भारी नुकसान हुआ था। उसके बाद से अब तक इस झील पर नजर बनाए रखनी पड़ती है। सनद रहे कि स्पीति घाटी में जहां पारछु झील का खतरा मंडराता रहता है वहीं अब दूसरी तरफ लाहुल में भी सिस्सू के पास गिपगांत ग्लेशियर पर भी झील बन गई हैं। यदि झील फट गई तो यह झील चंद्रा नदी में सिस्सू से लेकर कश्मीर तक तबाही मचा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय रैंज में बढ़ते ग्लोवल वार्मिंग के कारण ऐसी घटनाएं घट रही है।
गौर रहे कि हिमालय के कई ग्लेशियरों पर झीलों के विकसित होने से खतरा उत्पन्न हो गया है। यही नहीं भारी ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिछले वर्षों में उभरे ग्लेशियर जहां सिकुड़ गए हैं वहीं ग्लेशियरों पर झीलों के बनने से प्रकृति को खतरा हो गया है। वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि हिमालय के ग्लेशियर 74 मीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से पिघल रहे हैं। प्रदेश के पर्यावरण विभाग ने पारछु झील पर लगातार नजर रखी हुई है। केंद्र के मंत्रालय को इसकी सूचना दी जा रही है। डीसी राणा, प्रिंसीपल सचिव एवं निदेशक पर्यावरण विभाग