प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के जंगलों में ऐसे गिरे पड़े, और सूखे पेड़ों (साल्वेज टिम्बर) के लिए एक नई नीति तैयार की है। नीति बनने पर अब इन पेड़ों से न केवल इमारती तथा ईन्धन की लकड़ी निकलेगी, बल्कि इससे सरकार की आय भी बढ़ेगी। जबकि इससे पूर्व गिरे-पड़े पेड़ों को गैर किफायती घोषित कर नज़र अन्दाज कर दिया जाता रहा है।
यह जानकारी देते हुए वन मंत्री गोविन्द ठाकुर ने कहा कि प्रदेश सरकार के इस महत्वपूर्ण निर्णय और नीति से न केवल वन विभाग को विभागीय कार्यों में इस्तेमाल करने के लिए निशुल्क लकड़ी उपलब्ध होगी, बल्कि वन निगम से बड़ी राशि की मांग करने वाले ठेकेदारों की मनमानी पर भी रोक लगेगी। इससे पूर्व ठेकेदार पेड़ों से लकड़ी निकालने के लिए वन निगम से मनमाने दाम का दबाव डालते थे और मजबूरन निगम को यह बड़ी राशि अदा कर घाटा झेलना पड़ता था या फिर उन पेड़ों को गैर-किफायती घोषित कर दिया जाता था।
वन मंत्री ने कहा कि वर्तमान सरकार के प्रयासों से प्रदेश में यह पहल की गई है। इसके लिये विभिन्न स्तरों पर सुझाव आमंत्रित किए गए थे। नीति के अन्तर्गत गैर-किफायती (अन-इकोनोमिकल) टिम्बर का इस्तेमाल अब विभिन्न सरकारी विभागों, मसलन लोक निर्माण, सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, वन और वन निगम आदि द्वारा बनाए जा रहे सरकारी भवनों, वन विभाग और निगम की कार्यशालाओं में फर्नीचर बनाने के लिए प्रयोग किया जाएगा। जंगलों में इन पेड़ों के स्थान पर नई पौध भी तैयार हो सकेगी, जिससे न केवल प्रदेश के जंगलों में हरियाली बढ़ेगी बल्कि जंगल और समृद्ध होंगे।
नई नीति के बनने से वन निगम में भर्ती किये गए 81 चिरानी-ढुलानियों से भी उपयुक्त काम जा सकेगा। पूर्व में चिरानियों-ढुलानियों की भर्ती तो कर दी थी, लेकिन उनसे सम्बद्ध काम नहीं लिया गया। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने हिमाचल के जंगलों में सड़ रहे उन खराब या गिरे पड़े पेड़ों (साल्वेज टिम्बर) की तरफ ध्यान दिया है, जिसे अब तक गैर-किफायती समझ कर जंगलों में ही छोड़ दिया जाता था। वन निगम अब तक ऐसे पेड़ों को, अन-इक्नोमिकल घोषित कर देता था और घाटा होने के डर से इस्तेमाल नहीं करता था।
ऐसे में यह पेड़ गलने-सड़ने के कारण न केवल नए पौधों की पैदावार को कम करते थे, बल्कि स्पष्ट नीति न होने के कारण बेशकीमती लकड़ी जंगलों में ही सड़ जाती थी। इसी के मद्देनज़र राज्य सरकार ने 27 जुलाई 2018 को एक अहम अधिसूचना जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि गैर-किफायती समझे जाने वाले हज़ारों पेड़ों को अब नज़रंदाज़ नहीं किया जाएगा, बल्कि इससे प्राप्त होने वाली लकड़ी का दोहन अब न केवल टीडी के तहत किया जाएगा बल्कि सरकारी भवनों के निर्माण और अन्य विकासात्मक कार्यों के लिए भी किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि जो लोग हिमाचल के जंगलों में अकारण लगने वाली आग को बुझाने में स्वयंसेवी के रूप में अहम योगदान देंगे, उन्हें विभाग प्राथमिकता के आधार पर इन पेड़ों से बढ़िया लकड़ी निकाल कर टी डी के तहत देगा। इसके अतिरिक्त नई नीति के अनुसार हिमाचल प्रदेश वन विभाग भी इसका इस्तेमाल वन विश्राम गृहों, निरीक्षण गृहों, ट्रांज़िट आवासों, वन प्रशिक्षण केन्द्रों, सामुदायिक भवनों, सम्वाद केन्दों, चिड़ियाघरों आदि में इस्तेमाल कर सकेंगे। प्रदेश में इको टूरिज्म के संवर्धन और जंगलों में विभिन्न ट्रैकों पर लगाए जाने वाले लकड़ी के छोटे पुलों के लिए भी साल्वेज लकड़ी का इस्तेमाल किया जा सकेगा।
वन विभाग और वन निगम की कार्यशालाएं भी अब इस साल्वेज टिम्बर का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने के लिए कर सकेंगीं इसके लिए वर्कशॉप को मात्र 25 रुपये रायल्टी ही वन विभाग को देनी होगी। लकड़ी की चिराई का खर्चा वन विभाग और वन निगम स्वयं वहन करेंग। यही नहीं राज्य के सरकारी विभागों में होने वाले विकासात्मक कार्यों मसलन नए भवनों के निर्माण, मुरम्मत आदि के लिए अब इसी नीति के तहत किफायती दरों पर लकड़ी प्रदान की जाएगी। पेड़ों से लकड़ी निकालने अर्थात चिराई पर आने वाला व्यय ही सम्बंधित विभाग को अदा करना पडेगा, जबकि वन निगम इस लकड़ी के लिए कोई शुल्क नहीं लेगा।