शिमला डिसेबल्ड स्टूडेंट्स एसोसिएशन (डीएसए) ने राज्यपाल को पत्र भेजकर मांग की है कि हाईकोर्ट के आदेशों के मद्देनजर विकलांगों को आरक्षण देने के लिए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के रोस्टर में बदलाव किए बिना एमफिल की काउंसलिंग का रिजल्ट न निकाला जाए।
हाईकोर्ट ने नए कानून के मुताबिक विकलांगों को उच्च शिक्षा में 5% आरक्षण देने के आदेश दिए थे। विश्विद्यालय ने एमए और बीएड में तो इसे लागू कर दिया मगर कम सीटों वाले एमफिल व पीएचडी कोर्सों में लागू करने का तरीका नहीं निकाला। यह मामला हाइकोर्ट में सुनवाई के लिए अब 31अक्टूबर को लगेगा।
डीएसए के संयोजक मुकेश कुमार ने राज्यपाल व विश्विविद्यालय के कुलाधिपति आचार्य देवव्रत को पत्र लिख कर मांग की है कि कल 27 अक्टूबर को हो रही एमफिल की तथा जल्द ही होने वाली पीएचडी की कॉउंसलिंग के नतीजे घोषित न किये जाएं। उनका तर्क है कि इन रिसर्च कक्षाओं में सीटें कम होती हैं और विश्वविद्यालय ने इनमें प्रवेश के लिए पुराने व त्रुटिपूर्ण रोस्टर व्यवस्था को ही आधार बनाया है।
मुकेश कुमार ने राज्यपाल को बताया कि संसद द्वारा 16 दिसंबर 2016 को पास किया गया विकलांग जन अधिकार अधिनियम इस वर्ष 19 अप्रैल से पूरे देशभर में लागू किया जाना था इसकी धारा 32 के अंतर्गत विकलांजनों को उच्च शिक्षा में कम से कम 5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना था। विश्विविद्यालय द्वारा इसे लागू न किए जाने पर उमंग फाउंडेशन की सदस्य, चम्बा की दृष्टिबाधित छात्रा इंदु कुमारी व कुछ अन्य विकलांग विद्यार्थियों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर न्याय की गुहार लगाई।
हाईकोर्ट ने पत्रों को जनहित याचिका मानकर कार्रवाई शुरू की और 5 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के आदेश दिए। हाईकोर्ट के आदेश पर इंदु कुमारी को एमए (राजनीति विज्ञान) के अलावा दृष्टिबाधित जितेंदर कुमार व विजय कुमार को बीएड व रविंदर ठाकुर को एमए (अर्थशास्त्र) में प्रवेश व होस्टल दिया गया।उन्होंने कहा कि इसके बावजूद एमफिल व पीएचडी के लिए पुराना रोस्टर ही लगाया जा रहा है जिससे विकलांग विद्यार्थियों को नुकसान होगा। उन्होंने कानून के मुताबिक विकलांजनों को न्याय मिलने तक एमफिल व पीएचडी की सीटें भरे जाने पर रोक की मांग की है।