आज बकरों की आई शामत

अपनी अनूठी परंपरा के लिए देश-प्रदेश में विख्यात गिरीपार क्षेत्र में आज माघी त्यौहार मनाया जा रहा है। क्षेत्र में यह सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है जिसमें करीबन 40 हज़ार बकरे काटे जाते हैं। यह त्यौहार खासकर जिला सिरमौर में पांवटा साहिब के आंज-भोज, शिलाई, राजगढ, रेणुका तथा शिमला से लगते उत्तराखंड के जोणसार-बाबर आदि गिरीपार के इलाकों में रहने वाले हाटी समुदाय के लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। इस त्यौहार में हर परिवार में एक बकरा काटने की परम्परा है जोकि सदियों से चली आ रही है और इस त्यौहार को मनाने के लिये देश-विदेष के विभिन्न हिस्सों में नौकरी/व्यापार आदि करने गए युवक/युवतियां भी छुट्टी लेकर घर आते हैं और अपनों के साथ त्यौहार में खुशीयां मनाते हैं। इस दौरान लोग बाज़ारों से घरों को सजाने व खाद्य सामग्री की विशेष खरीददारी भी करते हैं।

गिरिपार के लोग साल भर से अपने घरों में बकरे पालते हैं तथा 11 जनवरी को उन्हें काट दिया जाता है। क्षेत्र के धनवान लोगों के बीच बडे से बडे और महंगे से महंगे बकरे काटने की स्पर्धा भी रहती है जो उनकी शान का प्रतीक होता है तो वहीं दूसरी ओर त्यौहार को मनाने के लिए बाध्य गरीब परिवार भी अपने घर में पाले हुए छोटे बकरों को ही काट कर खुशियां मना लेते हैं। हलांकि अब नई पीढी के युवा इसे इतना जरूरी नही मानते जितना 20 वर्ष पहले हुआ करता था।
पौराणिक परम्पराओं के अनुसार क्षेत्र में जब बर्फबारी होती थी तो लोग ठंड से बचने के लिए मीट का सेवन करते थे जिसे बाद में माघी त्यौहार का रूप दे दिया गया परंतु इसे निभाना गरीब के लिए अब मुसीबत बनता जा रहा है। इस परम्परा को समाप्त करने या इसकी तिथी को हेर-फेर करने के लिए कई समाजिक संगठन लम्बे समय से प्रयासरत हैं किंतु अभी तक एक राय नही बन पाई है।

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